अगन लपट से बुझे तीर ने
मानवता को बींध दिया
निशा का साम्राज्य सबल है
शैतानी ने नाच किया
फिर फिर कंस ने जन्म लिया
फिर रावण ने उत्पात किया
मनुष्यता को दांव पर रख
इश्वर को ललकार दिया?
क्या नाश के दुःख से
कभी निर्माण रुकता है ?
"नव पलाश पलाश वनं पुरं
स्फुट पराग परागत पंकजम"
सुबह का आह्वान होगा
नीड़ का निर्माण होगा
प्रलय की निस्तब्धता में
कंस का विनाश होगा
नेह का आव्हान होगा
सृष्टि में नवगान होगा
फिर नीड का निर्माण होगा
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