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Wednesday, December 23, 2009

निशा सुन्दरी

3-निशा सुन्दरी

अलसित सांध्य परी
कोमल कली

गंभीर, निश्चल, निश्चाप,
नव निशा सुन्दरी बन

श्यामल घुँघराले बालों में
हंसती हुई इक तारिका गूँथ

अम्बर पथ से शनै: शनै: चल-
थके हारे जीवों को अंक में भर,

माँ सी-थपथपा,नींद-स्नेह का प्याला पिला,
विस्मृत मीठे अनेक सपने दर्शा,

दुःख दर्द मिटाती है ?

2 comments:

  1. सच्चे मन से निकली एक सच्ची कविता!
    इस माँ को मेरा मधुर नमन!

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