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Monday, May 23, 2011

अशोकवन- बंदिनी

अशोकवन- बंदिनी
सिया,
शोकग्रस्तिता एकाकिनी ,
वनदेवी तपस्विनी
जनकसुता सुभाषिणी.
मृगछोने,चातक,पंछी,
मोर, उसके संगी साथी.
सखा तरुवर,
लताएँसखियाँ,
जिनसे से वह
बतियाती,
लछमन छोटे भ्राता
और,
राम मेरी आत्मा,
वही मेरे प्राणपति,
और वही हैं
परमात्मा.
जा रे मयूरा,
जा रे चातक,
पिय से जाके
यों कहियो ,
सिया तिहारी
बाट जोहे,
अब देर
न करियो
प्रभु! शीघ्र
मम बाधा हरियो.
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2 comments:

  1. अशोक वन में माता सीता की निवास-अवधि को
    बहुत खूबी से शब्दों में चित्रित किया है ...
    पढ़ते-पढ़ते आँखों के आगे
    इक झांकी-सी खिंच गयी ...

    अभिवादन स्वीकारें .

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  2. धन्यवाद दानिश जी.

    'सियाअशोकवन-बंदिनी' के लिए आपके उद्गार मुझे प्रिय हैं.

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