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Friday, July 8, 2011

पलाश

पलाश
बसंत का मेला लगा है,
मेला है यह खास,

स्वागत को ऋतुराज के,
खड़े प्रहरी पलाश,
पलाश की सुर्ख चुनरिया,
टंके टेसू के फूल,
टेसू फूलों कढ़ी चुनरिया,
ओढ़े प्रकृति दुकूल,

नवोढ़ा सजधज कर आई है,
वन उपवन सब सुरभित,
सुरभित सुगंधित मलय पवन है,
तरु शिखा अनुरंजित,
अनुरंजित चहुँ दिशा शोभिता,
वन उपवन सब गंधित,

कोकिल कलरव  कंठ गान से.
वन उपवन सब गुंजित.
कानन कानन उपवन उपवन.
शोणित पलाश मकरंदित.
नव पलाश पराग वनं पुरम.
स्फुट पराग मृदु मोदित गंधितम.

4 comments:

  1. Replies
    1. ज़ाकिर अली ‘रजनीश’

      मेरी कविता को लिए आपकी अभिव्यक्ति अनमोल है.अभिनन्दन.

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  2. ati sundar !! aap ka ek ek shabd moti sa hai

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    Replies
    1. Murari Pareek,

      मेरी कविता को लिए आपकी अभिव्यक्ति अनमोल है.
      अभिनन्दन.

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