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Thursday, September 15, 2011

यह कहानी रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान की...(झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई):


यह पवित्र कहानी मेरे देश हिंदुस्तान की,
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है बलिदान की.
जय जय भारती...जय जय भारती...

सुनो कहानी रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान की,
सब जन उसको नमन करो वह पुत्री हिंदुस्तान की.
बुन्देले हरबोलों के मुहं हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार,
महाराष्टर-कुल-देवी भी तो उसकी इष्ट भवानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईं,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई,
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

रण-चण्डी बन लड़ी लक्ष्मी झाँसी के मैदानों में,
खूब लड़ी वह मर्दानी बन मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में,
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,
दूर फिरंगी को करने की उसने मन में ठानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-मार काट मचाती रानी चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार,
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी।
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ,सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं... खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जय जय भारती...जय जय भारती...

-जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
तेरा यह बलिदान जगा था बन स्वतंत्रता अविनासी,
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी.
बुन्देले हरबोलों के मुहं हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

यह पवित्र कहानी मेरे देश हिंदुस्तान की,
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है बलिदान की .

-- जय जय भारती...जय जय भारती... –
जय जय भारती...जय जय भारती...





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