बसंत का मेला लगा, लगा यह मेला खास,
स्वागत को ऋतुराज के, खड़े प्रहरी पलाश.
पलाश की सुर्ख चुनरी, टके टेसू के फूल,
टेसू फूलों कढ़ी चुनरिया, ओढ़े प्रकृति दुकूल.
नवोढ़ा सजधज आई है, वन उपवन सब सुरभित,
सुरभित गंधित मलय पवन,तरुशिखा अनुरंजित.
अनुरंजित हैं चहुँ दिशायें, वन उपवन सब गंधित.
कोकिल कलरव कंठ से वन उपवन सब गुंजित.
वन उपवन स्वर गुंजित, पवन, पलाश मकरंदित ,
नव पलाश पुलकित दिखे, स्फुटित परागत पंकज.
स्वागत को ऋतुराज के, खड़े प्रहरी पलाश.
पलाश की सुर्ख चुनरी, टके टेसू के फूल,
टेसू फूलों कढ़ी चुनरिया, ओढ़े प्रकृति दुकूल.
नवोढ़ा सजधज आई है, वन उपवन सब सुरभित,
सुरभित गंधित मलय पवन,तरुशिखा अनुरंजित.
अनुरंजित हैं चहुँ दिशायें, वन उपवन सब गंधित.
कोकिल कलरव कंठ से वन उपवन सब गुंजित.
वन उपवन स्वर गुंजित, पवन, पलाश मकरंदित ,
नव पलाश पुलकित दिखे, स्फुटित परागत पंकज.
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