है अपना हिंदुस्तान कहाँ
वह बसा हमारे गावों में
पगडंडी कच्ची राहों में
फूटी टूटी सड़कों में
बैलगाड़ी को हांकते हुए
दूर दराज़ की राहों में
खपरेलों की कतारों में
घास के ढूँओं ढाओं में
है अपना हिंदुस्तान कहाँ
वह बसा हमारे गावों में
खड्डों, छप्पडों, तालाबों में ,
बैलों से रहट व हल चलते
खेतों व खालिआनो में,
सरसों के पीले फूलों में
अरहर -गन्ने के खेतों में
रहीमा-रामू के नामों में
है अपना हिंदुस्तान कहाँ
वह बसा हमारे गावों में
नदी कुँओं तालाबों से
जल भरती हुई बालाओं के
सौंदर्य से सुरभित राहों में
देवर भाभी के रिश्तों में
राधा रधिया के नामों में
है अपना हिंदुस्तान कहाँ
वह बसा हमारे गावों में
सोने चांदी का नाम न लो
पीतल कांसे के कड़े छड़े
मिल जाएँ बहुरानी को तो
समझो उसके सौभाग्य बड़े
रांगे के काली बिच्छिओं में
पति के सुहाग के भावों में
है अपना हिंदुस्तान कहाँ
वह बसा हमारे गावों में
सिंदूर के रंग से मांग सजे
माथे की टिकुली बिंदिया में
लाख व कांच की चूड़ी में
पति के सुहाग के भावों में
है अपना हिंदुस्तान कहाँ
वह बसा हमारे गावों में.
In my childhood, I recited a poem in school which went like-
ReplyDeleteजगमग नगरों से दूर-दूर हैं जहाँ न ऊँचे खड़े महल
टूटे फूटे कुछ कच्चे घर, दिखते खेतों में चलते हल
पुरी पालों खपरैलों में, रहीम रमुआ के नावों में
है अपना हिंदुस्तान कहाँ, वह बसा हमारे गांवों में
A lot of lines from your poem are very similar to that one. Can you please tell me where can I find the original one.
ये पंक्तियाँ आधी अधूरी ही हैं
DeleteEven I am searching the same but could not. Therefore I gave my lines to my remembrances. Can you give your name please.
ReplyDeleteThanks.