१- सखि! बसंत आया, लो फिर बसंत आया,
कानन-उपवन, डाल-डाल,
रंगों में भर करके गुलाल,
फूलों का रंग,
खुशियों का संग,
चहुँ ओर नवल,
मन मोर मगन,
मन में खुमार लाया,
आया बसंत आया,
तितली चिरिंदा,
हर वह परिंदा,
पशु पक्षी वृन्द,
सबको आनन्द,
मद मस्त हुए,
नवगीत की धुन,
मुस्काएं गुनगुनाये,
सन्देशहैं पहुंचाए...
खुशियों का रंग लेके बसंत,
लो फिर बसंत आया.
यह शाश्वत कहानी,
लगने लगी बेमानी,
हुआ समय का फेरा,
आतंकियों ने घेरा,
कर अतिक्रमण,
सीमा को दे चुनौती,
सबल दानवता,
मानवता रोती.
बन मानवबम्ब,
बसंत पर ग्रहण
बदरंगी धुंधलका छाया.
बिकीं आत्माएँ,
मिटी आस्थाएं,
अत्याचार का चोला,
अनाचार बढ़बोला,
सब कलुष कलुष,
आतंक फलित.
सब ओर है डर,
कुछ भी न स्थिर.
अबकी बसंती मेला
मैला विषैला हो आया!
चोरी धमार,
है बेमुशार,
कहीं आगजनी,
तो भूखजनी,
शिशु, कन्यायों की
उठाई गिरी,
आतंकियों का घेरा,
चहुँ ओर है अँधेरा ,
कैसा बसंत आया!
बदरंग होके छाया.
उठ जाग युवक,
रण भेरी बजा,
ले पकड़ खडग,
अब बन कर्मठ,
अन्याय मिटा,
पहन बासंती चोला,
है यही समय का बोला,
अन्याय का हो अंत,
वीरों का यही बसंत!
सब मिल कर कहें-
फिर से बसंत आया.
मैं मग्न हुई,
पकड़ी सितार,
गाऊं बसंत,
रागिनी बहार,
कोकिल के संग
ले विहग वृन्द,
फूलों में रंग
ले के बसंत,
जीवन का,
गीत गान गाया.
फिर से बसंत आया,
लो सखि! बसंत आया.
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Bahut sundar geet...
ReplyDeleteMan bha gaya...
Thanks
ReplyDeletekavita ji.