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Friday, February 12, 2010

तूफानों से खग कब डरते

तूफानों से खग कब डरते
पुन: पुन: निर्माण करते

आंधी पानी के आतंक से
कभी न अपना साहस छ्डते
घर घोंसला नष्ट पाकर
पुन: पुन: निर्माण करते
संलग्न रहते, कभी न डरते

नन्हीं चींटी सौ सौ बार
गिर गिर पडती, फिर फिर चढ़ती
दाना मुहं में प्रतिपल दाबे
उत्साह से  चढती, आगे बढती
मग्न  रहती, कभी न डरती

रात्रि के अंधकार से निडर
उषा फिर फिर मुस्कुराती
प्रलय-बेखबर मनु-इडा का
सृष्टि का निर्माण फिर फिर
प्रकृति का आव्हान फिर फिर

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