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Friday, April 23, 2010

कि-
मधुर वार्तालापों
के अंतराल,
अविरल,
प्रेमपूर्ण निहारूं

कि-
स्वहस्त नव निर्मित
लिफाफे में,
प्रेमी को लिखे पत्र के
साथ बंद रहूँ.

कि-
खेत जोतने के परिश्रम से,
हाथ-पैरों के तलवों में पड़े,
दृष्ट व अदृष्ट
छालों में रहूँ.

कि-
स्कूल तथा कक्षामें जहाँ,
ईमानदारी, वादे व उत्साह,
को बल मिलता है,
में रहूँ.

कि-
कार्यरत माँ की सांसों,
उसकी क़ुरबान धडकनों में,
तथा निष्कपट पिता के स्कूटर के,
घिस्से पहिये में निवास करूं.

कि-
पर्वत समान अडिग हृदय,
जो समय के नृशंस थपेड़ों के विरुद्ध,
हरेक पवित्र काम में,
धडकता रहता है-
 में रहूँ.

कि
वहां समय बिताऊं, तनिक भ्रमण करूं,
जहाँ प्यार का आभास हो,
मधुर विजय गीत-
गुंजायमान हों,

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