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Saturday, May 7, 2011

प्राण को तज जा रहे हैं,

विरह मिलन है रीत निराली,
यही है जग की रीत,
प्राण को तज जा रहें,
आज मन के मीत,

हे हृदय तू गा विदा के,
आज आकुल गान,
प्राण को तज जा रहे हैं,
प्राण के महमान,

ऑंखें मेरी भर भर आतीं,
आंसुओं की झड़ी लगाती,
हृदय की पीड़ा बनी है,
बन के निकली गीत,
प्राण निकले जा रहें,
हे प्राण के मीत,

विहग जाओ,
धीर पंखों में लिए पतवार,
पार कर लो,
नील नभ सा विश्व पारावार,
हो तुम्हें आलोक शत शत,
मिलन के मेहमान,
कलरवों में बह चले,
मिल शत हृदय की त्राण।
प्राण को तज जा रहे हैं,
प्राण के मेहमान

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