मेरी रचनाएँ: मेरे गीत और मेरे चित्र
अभियुक्ति: नवगीत पाठशाला : में मेरी रचनाएँ
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Monday, May 23, 2011
धरा महतारी,
दोनों हाथों से लुटाती
धरा महतारी,
फिर भी होता हाथ न
उसका कभी भी खाली,
दे दे कर वह हमें
कभी भी न अघाती,
जैसे मां बच्चों को
प्यार से गले लगाती,
हम ऐसे कृतघ्न जो
उसको दुःख देते हैं,
वृक्ष काट काट उर्वरा को
बंजर करते हैं, -
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