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Monday, May 23, 2011

हरे भरे खेत थे,

हरे भरे खेत थे,
पुष्प लाल श्वेत थे,
नष्ट हो गए सभी,
और हम खड़े खड़े,
हो सका न कुछ मगर
तमाशबीन बने रहे,
नाश देखते रहे.
विनाश देखते रहे,
वृक्ष कट कट गिरे,
बुलडोज़र थे चले,
हमने सब देखा किया,
खेल देखते रहे,
नाश देखते रहे,
विनाश देखते रहे,

जंगलात को मिटा,
खेत खलिआन हटा,
दस बीसतल्ले के
बिल्डिंग उठा उठा,
हर जगह कंकरीट के
साम्राज्य बन गये,
और हम खड़े रहे,
तमाशबीन की तरह,
नाश देखते रहे,
विनाश देखते रहे,

पूछा कि क्या है सब?
ज़न्नत का ज़िक्र चला,
असल में ज़न्नत नहीं,
जहन्नुम का जवाब था,
आज जब बाढ़ और
सुनामी का नाम सुना,
तहस नहस हो गया,
गाँव सब बह गए,
सब कुछ लुट गया,
ख्वाब सब धरे रहे,

हम रहे थे देखते
जन्नत के वे ख्वाब,
मौत का शबाब देखा,
हम सन्न रह गये,
हो सका न कुछ मगर,
हाथ ही मलते रहे,
हम थे पिटे पिटे,
वक्त के घिसे घिसे,
इंसानियत का
नाश देखते रहे.
विनाश देखते रहे,
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