Followers

Monday, May 23, 2011

राधा की पुकार:

मैं हूँ तोरी मृदुल मुरलिया,
कहाँ गए चित चोर!
मोरनी बन कर बन बन नाचूँ,
मेरे मन के मोर.

अखियाँ ढूँढ़ रहीं दरसन को,
प्यारे! तिहारे देखन को,
काहे गए परदेस रे कान्हा,
ओ मेरे सरमोर.

वह मथुरा की कंचन नगरी,
तोहे बहुत लुभाई!
हंससुता की सुंदर कगरी,
कदे याद न आई,

ये गैय्या और गोप गोपियाँ,
और मैं राधा तोर,
मैं थी तोरी मधुर मुरलिया,
ओ मेरे सरमोर!

भूल गये तुम? मैं कभी थी,
तोरे मन की मीत,
संग रहे थी सदा तिहारे,
जैसे गीत संगीत.

गहन निशा के बाद आवे,
जैसे नवल सवेरा.
आन मिलो इस राधा को तुम,
मेरे कृष्ण कन्हैय्या.

कहाँ चले गए सांवरिया?
ओ मेरे सरमोर!
मोरनी बन कर बन बन नाचूँ,
मेरे मन के मोर.-----------------

No comments:

Post a Comment