समय का सूत कात रही बुढ़िया,
अंत नहीं इस पूनी का,
धरा का चरखा खूब चलाती
अचरज है इस होनी का
कात कात लपेट समय को.
देती जाय युगों का नाम.,
युग बीतें बी त ते जायें
अंत नहीं इस होनी का,
समय सूत की तार न टूटे,
रहस्य काल है इस होनी का.
अंत नहीं इस पूनी का,
धरा का चरखा खूब चलाती
अचरज है इस होनी का
कात कात लपेट समय को.
देती जाय युगों का नाम.,
युग बीतें बी त ते जायें
अंत नहीं इस होनी का,
समय सूत की तार न टूटे,
रहस्य काल है इस होनी का.
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