प्रसन्न-वदन चतुर्भज विष्णु ने
ब्रह्मांड में
नव जीवन के विस्तार
ब्रह्मांड में
नव जीवन के विस्तार
के विचार से,
आशीर्वाद सहित
अपना क्रौंचशंख उठाया,
आशीर्वाद सहित
अपना क्रौंचशंख उठाया,
समस्त संसार
गहरे नाद से गूंज उठा,
नक्षत्र सराबोर हो गये,
उनकी शक्तिशाली लपटें
आंसुओं से बुझ गयीं,
उन्माद समाप्त हो गया,
गहरे नाद से गूंज उठा,
नक्षत्र सराबोर हो गये,
उनकी शक्तिशाली लपटें
आंसुओं से बुझ गयीं,
उन्माद समाप्त हो गया,
दिव्यकवि ने
एक अद्भुत इतिहास की
रचना कर डाली,
आलौकिक महाकाव्य का
निर्माण हुआ,
एक अद्भुत इतिहास की
रचना कर डाली,
आलौकिक महाकाव्य का
निर्माण हुआ,
चन्द्र, सूर्य और सितारे
व अन्य समस्त गह,
ग्रहपथ में अनुशासनबद्ध गति से,
संगीत के लय ताल में बंध गये,
व अन्य समस्त गह,
ग्रहपथ में अनुशासनबद्ध गति से,
संगीत के लय ताल में बंध गये,
और विष्णु
मन की गहराइयों से
अपने कृत्य की छटा को
मन की गहराइयों से
अपने कृत्य की छटा को
कमल नयनों से
निहारने लगे,
लक्ष्मीजी मुस्काने लगीं,
बादल इन्द्रधनुष पर झूल उठे,
दिव्य सौन्दर्य देखने के लिए ,
बसंत ने पुष्पनेत्र खोले,
दिव्य सौन्दर्य देखने के लिए ,
बसंत ने पुष्पनेत्र खोले,
ईश्वर की वह आलौकिक छटा
सर्वत्र छा गयी,
सबकुछ
मधुरमय,
संगीतमय हो गया।
मधुरमय,
संगीतमय हो गया।
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