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Monday, December 21, 2009

अलसित रवि ने,धुंधली ऑंखें मल,कोहरे की चादर ओढी.

अलसित रवि ने,धुंधली ऑंखें मल,कोहरे की चादर ओढी.
ठिठुरी उषा उठी सोई सी पिय स्वागत को मिलने दौड़ी.

सकुचाई सी, लज्जाई सी, बिन बनाव-शृंगार किये,
मुक्त केशों को ही बांधा, प्रियतम का आव्हान किये.

शिशिर ने अपना पासा फेंका, घना कुहासा छा गया,
चहुँ दिशा पाले से लिपटीं- गहन धुंधलका पसर गया

वृक्षों की उतुंग शिखा पर, ठंडी, नर्म उदासी थी ,
नीड़ों में दुबके बच्चे, खग सारे पक्षी औ पांखी.

पर्वतों की ऊँची श्रुन्गाएं श्वेताम्बरी हिम से ढकीं
नदिया का जल प्रवाह रुका, लहरी उर्मी सोई सी.
किसलय पर ओस बुंदिया, थी शीतलता से कांप रही
तितली-भंवरों की गुनगुनाहट, ठंडकता से थरथराही

इतने में रवि ने करवट ले, प्रीत भरी दृष्टि फेरी
स्व ऊष्मा का दान दिया, समस्त नजारा बदल गया,
घूंगट धुंध का छट गया. खुशियों की फैल गयी लहरी,
प्रकृति ने शृंगार किया, अभिसारिका प्रिय प्राण मिली

प्रसन्नवदना हरित वस्त्रावृता, अनेक पुष्प विभूषिता,
अधरों में मंद सुगंध लिए, पिय साजन को रिझान लगी.
कुहू कुह कुह कुह से बोल उठी , लतिका आँचल से झूम उठी
लहर-उर्मि के घुंगरू बांध, तटनी तरला हिलोर उठी,

कहीं धूप अभी, तो छाँव अभी, कभी ग्रीष्म तो कभी शीत है,
परिवर्तन ही जीवन है और यही तो जग की रीत है.
जगमगाती ज्योति का यह नियम अटल, विधान है
जगमगाती ज्योति को न विराम है न विश्राम है.

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