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Tuesday, December 15, 2009

नीलांबर से ढलते तारे, पूरब की यह अरुणाई,


मलय पवन की पवन लहरी, तन में लाई ठिठुराई.

किसलयओं, डालों में गूंजी, मधुर बजी है शहनाई,

पंछी गाते, चहचहाते, करते स्वागत अगवाई.

उपवन में मधुमत्त हो भ्रमर, संग में ले कर तितलियाँ,

स्वागत स्वर में मधुर धुन पर गुनगुनाने गीतियाँ.

वृक्षों की डालों से पंछी गीत संगीत के रंग लिए,

पुष्पों की सुगंध लिए व् तितलियों को संग लिए.

यह सुवासित सुखमय आनंद, पागल करती हुई सुगंध,

शबनम की लड़ी से सजी प्रकृति करती स्वागत हरक्षण.

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