रवि-शशि गगन-धरा का घेरा,
उषा-निशि सांझ-प्रभात का फेरा,
प्रकृति के गलियारों में,
बदलती अनवरत बहारों में,
इन्द्रधनुष के रंगों में,
पर्वतों के उतुंग श्रृंगों में,
प्रकृति सतत निरंतर
अविरल रहती हरक्षण,
गति में व्यस्त,
स्वयम में मस्त
बांसुरी की बानों में,
मालकोंश की तानों में
मधुकर से मीत में,
कोकिल के गीत में
श्याम की बाँसुरिया,
राधा की रासरिया
मृदुल अहसासों में,
बादल से कुहासों में
अविरल सांसों में,
अनंत, शास्वत
थिरकन व स्पंदन है
मधुर सा बंधन है
अविरल सांसों में,
ReplyDeleteअनित्य, शास्वत
थिरकन व स्पंदन है
मधुर सा बंधन है
Bahut sundar ahsaas se bhari rachna.
foreign mein rahkar jo log apni matra bhasha aur hindi ke prati prem bantte hain, wah mujh bahut bhaata hai...
Bahut badhai...
Thanks Kavita Rawat,
ReplyDeleteI am greatful for your beautiful comments. Pl. keep in touch.
All the very best.