आज मैं सूखा सुमन हूँ,
आज मैं सूखा सुमन हूँ,
इक दिन था कोमल कली,
वृक्ष की गोद में सुरक्षित,
पवन झुलाये दे झूल्ली,
कोमल किरणे चन्द्रिका की ,
गुदगुदातीं खिली खिली,
तुहिन के बिछोने पर,
सुलाती रजनी दे लोरी,
मधुप थे मन बहलाते ,
गीत गुंजा चोरी चोरी,
प्रणय प्यार से खिल,
नव यौवन को प्राप्त हुआ,
नव पराग से सुरभित कण कण,
आनंदित मदमस्त हुआ,
विविध रंगों की छटा निराली,
उपवन का श्रृंगार हुआ,
कोयल का मन कूक उठा,
बासंती मन नाच उठा,
मेरे मान का क्या कहना,
बाला का कंठहार बना,
"वरमाला में गूँथा मुझको,
देवों के मैं शीष चढ़ा,
भाग्य पर था इठलाया"
नशा छाया मदमस्त हुआ,
पर तब जाना नश्वर जग है,
पतझड़ ने जब वार किया,
प्रकृति के अटल नियम वश,
मुरझाया और झड़ गया,
जीवन कैसे रुक सकता था,
वह आगे फिर चल निकला,
शुष्क प्रसून के बीजों से,
नव निर्माण प्रसार हुआ,
अखंड निरंतर सदा चिरंतन,
जीवन नदिया बहता पानी
जीवन का अटल सत्य है,
चलते रहना यही कहानी .
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