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Wednesday, March 24, 2010

जीवन-अस्थिर सपनों सा, धुन्दले उलझे चित्रों सा,

जीवन अस्थिर
सपनों सा,
धुन्दले उलझे
चित्रों सा,
निद्रावस्था के सपने
दिवा स्वप्न  लगें अपने

कल्पनाओं के
घोड़ों पर,
इच्छाओं के
कोड़ो पर
मृगतृष्णा के आकाश में,
भटके बिन प्रकाश में,

गहरी खाइयों,
खड्डों में,
उलझता जाता
गड्ढों में,
अस्थिर जीवन का यह सत्य,
जीवन सपना है, असत्य,

रहस्य कोई
जानेगा कबतक,
सुलझा सका
न कोई अबतक,
जीवन धुन्दले सपनों का,
अस्थिर उलझे चित्रों का,

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