प्रात:प्रथम किरण,
सुहावने चरण.
हो रथारूड़,
यात्रा सुदूर-
अपनी राह छोड़,
तारों गृहों की ओर.
सोचा,लक्ष निकट ,
पर अति विकट.
राह लम्बी लगी.
दीक्षा-उलझन भरी,
बिना विकल्प,
दृढ़ संकल्प.
बाहरी दुनिया में,
भटकन,तड़पन में.
दस्तक-गलियारों पर,
अनजाने द्वारों पर.
पूजा,आराधना,
कठोर साधना.
अन्तर मानस में,
प्रवेश कैसे संभव!!
दृष्टि फ़ैली,भटकी.
ऑंखें बंद कर लीं.
प्रश्न:"ओह तुम कहाँ हो"?
सुनाई दिया:"मैं यहाँ हूं".
'प्रियतम'को,
सामने पाया!!
अश्रुओं के झरने-
झर झर,
जल प्रलय की तरह,
उमड़े,
ढुलक पड़े.
by Sharda Monga.
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