Followers

Wednesday, August 25, 2010

लक्ष की प्राप्ति (रूपांतरण 'गीतांजलि' से)

प्रात:प्रथम किरण,
सुहावने चरण.
हो रथारूड़,
यात्रा सुदूर-
अपनी राह छोड़,
तारों गृहों की ओर.

सोचा,लक्ष निकट ,
पर अति विकट.
राह लम्बी लगी.
दीक्षा-उलझन भरी,
बिना विकल्प,
दृढ़ संकल्प.

बाहरी दुनिया में,
भटकन,तड़पन में.
दस्तक-गलियारों पर,
अनजाने द्वारों पर.
पूजा,आराधना,
कठोर साधना.

अन्तर मानस में,
प्रवेश कैसे संभव!!
दृष्टि फ़ैली,भटकी.
ऑंखें बंद कर लीं.
प्रश्न:"ओह तुम कहाँ हो"?
सुनाई दिया:"मैं यहाँ हूं".

'प्रियतम'को,
सामने पाया!!
अश्रुओं के झरने-
झर झर,
जल प्रलय की तरह,
उमड़े,
ढुलक पड़े.

by Sharda Monga.

No comments:

Post a Comment