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Saturday, August 28, 2010

अखंड बंसुरिया.

तुमने मुझे असीम बनाया,
अजब यह, अनोखी माया!
कमल नाल सी जीवन की यह,
श्वासों की अखंड बंसुरिया.
पर्वत घाटियों तक गूंजती,
आदि काल से यह मुरलिया.
इस क्षीण पात्र को हरदम,
बार बार खाली करते हो.
और पुन: नवजीवन देकर,
फिर फिर से तुम भर देते हो.
तुम देने से नहीं अघाते,
अनंत काल से देते आते.
मेरे तो अति लघु हाथ हैं,
तव भेंटों से भर भर जाते.
तेरे कर कमलों के छूते-
ही, मेरे इस क्षुद्र हृदय में.
आनंद हिलोरें मारे अपार!
अवर्णनीय है तेरा प्यार!

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