.इडा, श्रद्धा, मनु की कहानी,
जयशंकर "प्रसाद" की ज़बानी
"एक पुरुष, भीगे नयनों से,
देख रहा था प्रलय प्रवाह"
पुनरावृति-
बारम्बार !!
फिर इस बार !
भीषण संहार.
भयंकर गड़ गड़,
बिजली तड़तड,
नभ-नालों के भुजंग सारे,
पूतना ने पांव पसारे,
धाराओं संग मिल-वीभस्त,
ताण्डवी नाच रही बदहस्त,
जल ही जल, जलमय थल,
सब एकसार, उथल पुथल,
हहराए गिरते पहाड़,
झंजोड़ते झंजावात,
फिसलते गोले,
सोनामी, बबोले,
दैव कुपित विकट,
प्रलय-कगार निकट,
चीख पुकार,
मानुषी प्रलाप,
भयंकर-त्रास,
सत्यानाश !
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