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Friday, January 14, 2011

भयंकर प्रलय

.इडा, श्रद्धा, मनु की कहानी,
जयशंकर "प्रसाद" की ज़बानी
"एक पुरुष, भीगे नयनों से,
देख रहा था प्रलय प्रवाह"

पुनरावृति-
बारम्बार !!

फिर इस बार !
भीषण संहार.

भयंकर गड़ गड़,
बिजली तड़तड,

नभ-नालों के भुजंग सारे,
पूतना ने पांव पसारे,

धाराओं संग मिल-वीभस्त,
ताण्डवी नाच रही बदहस्त,

जल ही जल, जलमय थल,
सब एकसार, उथल पुथल,

हहराए गिरते पहाड़,
झंजोड़ते झंजावात,

फिसलते गोले,
सोनामी, बबोले,

दैव कुपित विकट,
प्रलय-कगार निकट,

चीख पुकार,
मानुषी प्रलाप,

भयंकर-त्रास,
सत्यानाश !

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