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Monday, February 7, 2011

आओ सुनाऊँ एक कहानी,

रंग बिरंगी तितली रानी,
उडती फिरती
तिरती सी,
फूलों से करती मीठी बानी,

मलय पवन के झोंकों के संग,
सुबह सबेरे हर दिन उठकर,
तितली निकले
भ्रमण उपवन को,
जब आती मधु गंध दीवानी,

भांति भांति के फूलों पर,
तुहिन कणों के झिलमिल मोती,
कोमल कोंपल
किसलय, डालें,
पवन झुलाये थी मनमानी.

भ्रमर गुंजाते गीत सुनाते,
खग-कुल, कुहू करते अगवानी,
तट-तीर-तरंग
तटनी सुहानी,
स्वच्छ नीर सुनील करता मनमानी,

सुंदर स्वप्निल सी वह पगली,
उडती फिरती थी वन कदली,
रस पीती
मनचली- इतराती,
झूम झूम, करती मनमानी,

इतने में इक बालक आया,
हाथ में पकड़ा जाल बिच्छाया,
किस्मत की
मारी बेचारी,
फडफड़ाई फँस तितली रानी,

कर सकी न कुछ,
हा परालब्ध!
विधाता की करनी
ज़बरदस्त,
जो थी स्वतंत्र
मन की रानी,

जग हो गया था बेमानी,
पराधीन हो गई दीवानी,
हा तितली कहूँ कैसे बानी!
यह तेरी
कोमल करुणाभरी-
अति कठिन कहानी!!



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