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Monday, May 23, 2011

बेचारा मोर! भरता ठंडी आह!

पर जब आती बाढ़
ले जाती सब हरियाली
कभी बाढ़ तो कभी सुनामी
कहाँ की हरियाली
हरियाली जाती, रह जाती,
बंजर धरती ख़ाली,
याद करे वे दिन
प्रिया को ताका करता था,
उमड़ी घुमड़ी घटा देख,
वह नाचा करता था,
एक मानुष देख रहा
भीगे नयनों से
प्रलय प्रवाह
बेचारा मोर!
क्या करे!
है वह

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