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Sunday, May 27, 2012

-गर्मी की ऋतु सुबह सुहानी !

-गर्मी की ऋतु सुबह सुहानी !

त्याग बिस्तर मुहँ अँधेरे,
निकल भ्रमण को नदी किनारे,


झोंके मलयज, ठंडी भोर,
मधु मिश्रित मन अति विभोर,


बहती पुरवैय्या मनमानी!...गुलमोहर ने लिखी कहानी!...

सद्यस्नाता धरा मञ्जूषा,पूरब में मुस्कुराई ऊषा,

अमलतास ने खोले द्वार,
झूमर लटकें आर पार,


झरते फूल लदे पेड़ों से,
हरी घास पर बिच्छे 
रंगों से,

चिरप चूं खग अति अधीरा,
इस, उस वृक्ष उड़ने की क्रीडा,


सोने की थाली सा सूरज,मुस्काता, सुर्ख ले सूरत,

बदली किरणों की कहानी,
गर्मी की ऋतु सुबह सुहानी ! 

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