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Thursday, April 4, 2013

बच्चों का मन संसार. (रवीन्द्र नाथ टैगोर)


by Sharda Monga Aroma (Notes) on Friday, 5 April 2013 at 08:14 


मैं चाहता हूँ कि:
मैं--
बच्चों के भोले भाले
मन-संसार के शांत कौने में-
जहाँ सितारे रहते हैं
व उनसे बातें करते रहते हैं-
-में स्थान ग्रहण कर सकूँ.

जहाँ पगले बादल,
सतरंगी इंद्रधनुष
खिड़की के रास्ते चुपके से,
आहिस्ता आहिस्ता
अपनी सुंदर खिलोंनों भरी टोकरियों
व अनेक कथा-कहानियों सहित
प्रवेश करते हैं

और आकाश-
उनके चेहरे पर झुक कर
उनका मन बहलाता है.
जहाँ रियाँ उन्हें बादलों की
सैर कराती हैं,

मैं चाहता हूँ कि :
बच्चों के मन-प्रदेश में
मैं उन संदेश-वाहकों की तरह
जो अनंतकाल से
ऐतिहासिक राजाओं के
समस्त कार्य व संदेश
बिना शर्त के ले जाते रहे हैं-
में प्रवेश पा सकूँ.

कि-
जहाँ कारण ही
अपने क़ानूनों की पतंग
बना कर उड़ते हैं
और सत्य
सब तरह की
ज़ंजीरों से मुक्त रहता है.

मैं चाहता हूँ कि...

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